भगवान शिव का जन्म कैसे हुआ था ? शिव भगवान हिंदू धर्म के महादेव हैं, जिन्हें जन्म से ही सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ, और सर्वाधिक सामर्थ्यशाली माना जाता है। उन्हें गंगा और हिमालय के तट पर ध्यान में मलिन हुआ देखा जाता है। शिव को भोलेनाथ, नीलकंठ, आदि नामों से भी जाना जाता है।
उनके चारों ओर साँपों का गला होने से भी शिव को “नागेश” या “विश्वनाथ” कहा जाता है। शिव का त्रिशूल, नाग, रुद्राक्ष माला, गंगा जल का धारण करना उनकी पहचान है।
शिव की पत्नी होने के कारण माता पार्वती भी उन्हें साथी मानी जाती हैं। उनकी अर्धांगिनी भी हैं, जिन्हें माँ दुर्गा, सती, पार्वती आदि नामों से जाना जाता है। भगवान शिव का अयोध्या में रामायण काल में भगवान राम के अवतार काल में दर्शन हुआ था। वे हर हर महादेव कहलाते हैं और उनकी पूजा विशेष धार्मिक मानी जाती है।
शिव जी के विषय में लिखते समय यह महसूस होता है कि उनका प्रत्यक्षीकरण सनातन भारतीय संस्कृति में सामूहिक भावनाओं, तत्त्वों, और ध्यान की एक अनूठी विशेषता है। उनकी कृपा, संगीत, ताण्डव, ध्यान आदि कई रूपों में मानवता को एक दिशा देती हैं।
भगवान शिव की भक्ति और पूजा से मानव जीवन में शांति, संतुलन और सच्चाई की खोज होती है। उनके चारों ओर बसी शक्ति का अनुभव मानवता को एक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक अद्भुतता का अनुभव कराता है। उन्हें पूजने से मनुष्य को आत्मिक शक्ति मिलती है और उनकी कृपा से वे जीवन में सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
भगवान शिव की गहरी ध्यान और तपस्या की कहानियाँ हमें ध्यान और संयम की महत्ता सिखाती हैं। उनकी ध्यान और पूजा से मानव आत्मा को शांति, सुख, और समृद्धि की प्राप्ति होती है। भगवान शिव की भक्ति मानव जीवन में उत्तम नैतिकता, सच्चे मानवीय संबंधों को बनाए रखने का संदेश देती है।
भगवान शिव का जन्म कैसे हुआ था
भगवान शिव का जन्म उनकी अनन्त शक्तियों और अद्भुत कथाओं में से एक है। वेदों और पुराणों के अनुसार, शिव का जन्म भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर (शिव) के तीनों की उत्पत्ति के समय हुआ था।
समय के अन्तर्राष्ट्रीय धारा में, एक अद्भुत ज्योति स्वरूप ब्रह्मांड में प्रकट हुई, जो केवल एक दिव्य शक्ति थी, अनिर्वचनीय और अनंत। उस शक्ति से ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर का जन्म हुआ। ब्रह्मा, सृष्टि का पालन करने वाले थे, विष्णु उस सृष्टि का पालन करते थे, और शिव उनकी विनाश करते थे ताकि नई सृष्टि का पुनरुद्धार हो सके।
शिव का जन्म अनंत काल पहले हुआ था और उनका रूप, उनकी दिव्य शक्ति और उनकी लीला अनंत हैं। उनका जन्म शिव लिंग के रूप में हुआ था, जो केवल सर्वव्यापक, अनंत, और निराकार है। भगवान शिव के जन्म से जुड़ी कई कथाएँ और पुराणिक दृष्टिकोण हैं, जिनमें उनका जन्म उनकी महिमा और दिव्यता को दर्शाती हैं।
ये कथाएँ अक्सर विभिन्न ग्रंथों, जैसे कि शिव पुराण, मार्कण्डेय पुराण, और स्कंद पुराण में मिलती हैं। हर एक कथा अपनी विशेषता और दृष्टिकोण के साथ शिव जी के जन्म को व्याख्या करती है। परंतु उनका जन्म अनंत और अप्रम्पारिक है, जिसे शब्दों में व्यक्त करना मुश्किल है।
1. शिव पुराण: शिव पुराण के अनुसार, भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शिव) के तीनों की उत्पत्ति से एक तेजोमय ज्योति प्रकट हुई थी, जो शिव की आदि शक्ति थी। ब्रह्मा ने इस तेजोमय ज्योति को स्वीकार किया और उससे विष्णु ने भी परिक्रमा की, लेकिन शिव ने अपने अनंत स्वरूप को दर्शाने के लिए सभी की भ्रमण का अंत किया।
2. लिंग पुराण: लिंग पुराण के अनुसार, एक बार ब्रह्मा और विष्णु के बीच यह विचार हुआ कि कौन आदि देवता है। उन्होंने एक दिव्य ज्योति की उत्पत्ति के लिए प्रयत्न किया, जिससे शिव ने अपना स्वरूप प्रकट किया और उन्हें उनकी अनंतता का अनुभव हुआ।
3. मार्कण्डेय पुराण: मार्कण्डेय पुराण के अनुसार, भगवान शिव का जन्म उनकी अद्भुत शक्तियों और महिमा से हुआ था, जो कि ब्रह्मा और विष्णु के प्रयासों से प्रकट हुई।
सर्वोत्तम तथ्यशीलता और पवित्रता के साथ, शिव का जन्म उनकी दिव्यता और अद्भुत शक्तियों का प्रतीक है, जो मानव जीवन में शांति, समृद्धि, और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है।
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